शुक्रवार की रात, ऑफिस के एक और व्यस्त दिन के बाद, घर पर बहुत हल्की रौशनी में अकेले शीशे के गिलास में अल्कोहल लिए बैठा गिलास को देख रहा था | उस आधे भरे अल्कोहल युक्त द्रव्य में पिघलते हुए बर्फ के टुकड़े को देखा तो अपना बचपन एक बार फिर से आँखों के सामने जीवित हो गया | जीवित हो गयी वो यादें की कैसे हम भी इस बर्फ की तरह एक दूसरे में घुल मिल जाया करते थे | न कोई जाति होती, न ही कोई दुश्मनी, न कोई छल होता मन में, न ही कोई प्रतियोगता | यही सब सोचते सोचते, ये चंचल बन्दररुपी मन न जाने कब उछल के बचपन के दोस्तों के पास पहुंच के उनके बारे में सोचने लगा | सोचने लगा वो क्रिकेट के दिन, साइकिल रेस, होमवर्क नक़ल करना और न जाने क्या क्या …और उन्हीं यादो में खोये-खोये एक बार फिर मैं उनके साथ बड़ा हुआ |अब बारी थी उन दोस्तों की जिनके साथ ही मैंने पहली बार इस गिलास में भरी दवाई (कुछ तर्क संगत लोगो के लिए) का सेवन करना प्रारम्भ किया था | और इसी के साथ याद आयी वो अंगिनत यादें, जो आज भी हम दूबारा जीने की इच्छा रखते है | याद आया अपना वो साइकिल से मोटर साइकिल पर उन्नति, याद आया वो छुट्टी से बंक पर उन्नति, और याद आये वो हसीन लोगो के साथ वो हसीन पल, जिनको आज भी हमने कहीं दिल मे बसा के रखा है (कृपया व्यक्ति के निजी ज़िंदगी के बारे मे और रूचि न रखे ) | समय के साथ धीरे-धीरे आँखों के आगे एक अँधेरा सा छाने लगा और मैं गिलास वहीं रख कर इन हसीन यादों के सैलाब मे गोते लगाता रहा |
तभी ख्वाबों को तोड़ते हुए अचानक कहीं से एक आवाज आयी “ याद हूँ न मैं, या फिर भूल गए” इस आवाज को सुन कर मैं बहुत घबरा गया और भाग के कमरे की रोशनी तुरंत चालू कर दी | घर मे किसी और के होने एहसास मात्र से ही मैं सहम गया, और मेरा सारा नशा भी उतर गया | मैंने ज़ोर से आवाज लगायी “कौन है!! कौन है!!” पर रात के सन्नाटे के अलावा मझे कुछ सुनाई नही दिया, मैंने अपने डर पर काबू करते हुए हिम्मत कर के उसे खोजना चाहा | कमरे मे चारो तरफ कुछ न मिलने पर, हॉल और फिर हॉल से किचन… पर कुछ हाशिल नही हुआ, पर थोड़ी राहत ज़रूर महसूस हुई | लगता है आज ज़्यादा पी ली है या फिर दोस्तों की याद का असर है की इस तरह का वहम् मुझे हो गया. इसी असमंजस की स्तिथि मे वक़्त पर ध्यान गया तो रात के 2 बज चुके थे, और मैंने अब सोना ही उचित समझा |
बिस्तर पर लेटे हुए भी आवाज को ले कर असमंजस बरक़रार रहा. मेरे दिमाग मे सारे तर्क वितर्क चल ही रहे थे की, अचानक मुझे फिर वहीं आवाज सुनाई दी “ पहचाना नही मुझे….???” | इस बार मैं अपना आपा खो बैठा और गुस्से मे चिल्लाया, “कौन हो तुम?? सामने आओ…” | फिर थोड़ा सोच कर वापस चिल्लाया “जान पहचान तो होती रहेगी पर मुझे ये बताओ की बिना पूछें तुम मेरे घर मे आये कैसे और मेरे सामने क्यों नही आते”| पर मुझे इसके बाद कोई आवाज नही सुनाई दी और मैं चिढ कर कमरे मे वापस उसे खोजने की कोशिश करने लगा और न मिलने पर चिढ कर बोला “नही भाई नही पहचाना, मतलब देखे बिना कोई कैसे पहचान सकता है और, आपकी आवाज भी ऐसा लगता है पहली बार ही सुन रहा….कौन हो आप और सामने क्यों नही आते” | मेरे चुप होने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी और सिर्फ सन्नाटा ही फैला रहा कमरे मे |
फिर थोड़ी देर बाद एक बहुत ही शांत जवाब आया “ आप घबराइये मत मैं आपका एक चाहने वाला दोस्त ही हूँ, मैं आपको कुछ नुकसान नही पहुँचाऊँगा ” जवाब सुन के जैसे मेरा डर और गुस्सा बढ़ गया “ नुकसान नही पहुँचाऊँगा, तो ऐसे रात मे कोई चाहने वाला किसी के घर मे ऐसे घुसता है क्या, और ऊपर से तुम हो कहा सामने क्यों नही आते?” मेरे इतना चिल्लाने पर भी वो सामने नही आया और प्यार से बोला, “मैं कोई चोर थोड़ी न हूँ, मैं तो बचपन से आपके साथ हूँ, वो और बात है की आपने मुझे कभी अपना दोस्त या अपना साथी नही समझा होगा”| ऐसा जवाब सुन के मैं सोच मे पड़ गया की कौन है ये जो खुद को मेरे बचपन का साथी बता रहा, पर इसकी आवाज तो पहली बार सुनी है और न ही ये सामने आ रहा है | तभी वो अनजान आवाज फिर आयी “अच्छा–अच्छा ठीक है, मुझे पता है तुम मुझे भूल गए हो, तो मैं तुम्हे कुछ एक एक कर के 5 संकेत (clues) दूंगा अगर फिर भी तुम नही पहचाना तो मैं तुम्हारे सामने आ जायूँगा पर फिर मेरी आवाज तुम्हे नही सुनाई देगी”| उसके इस तरह बोलने से मैं थोड़ा निश्चिंत हो गया, और कोई रास्ता न होने की वजह से मैं उसकी बातों से सहमत भी हो गया |
अनजान आवाज : Clue 1 – बचपन का साथी, घर, स्कूल से ले कर कॉलेज तक |
मैं : थोड़ा असमंजस में आ कर सोचने लगा, क्यूंकि जहाँ तक मझे याद आ रहा था ऐसा कोई भी मेरा दोस्त नही था जो स्कूल और कॉलेज दोनों में मेरे साथ पढ़ा हो, और अगर इसका साथ रहने का मतलब मिलने और बाते करने से है तो, बात मेरी सबसे हो ही जाती है 10-15 दिन में, ऐसा कोई नही है जिसे मैं छोड़ दिया हो या अब मेरी बात नही हो किसी से | यही सब सोचा और किसी नतीजे पर न पहुंच कर मैंने दूसरा clue माँगा .
अनजान आवाज: Clue 2 – गलत सही सब में आपका साथ दिया, जो कहा वैसा ही किया |
मैं : ये कैसे clue है, ऐसे तो बहुत लोग है जो मेरे हर सुख-दुःख में मेरे साथ रहे, मेरे गलत सही में मेरा साथ दिया, ऐसे संकेतो से कोई कैसे अंदाज़ा लगा सकता है |
अनजान आवाज: (मेरी बातों को अनसुना कर के हसते हुए) Clue 3 – तुम्हारे भविष्य के लिए मैंने अपना खून बहाया, आज जहाँ भी हो उसमे मेरे खून का भी बलिदान है |
मैं : देखो भाई, तुम जो भी हो मैं रात के 2 बजे किसी भी मज़ाक के मूड में नहीं हूँ और हां मैं जहाँ भी हूँ खुद और अपने माँ-बाप की मेहनत और भगवान के आशीर्वाद से हूँ. और तुम कह रहे हो की तुम्हारे खून का बलिदान है, क्या मजाक लगा रखा है?
अनजान आवाज: Clue : 4 – खुद की टेंशन/दुःख में मुझे या मेरी शरीर को नुकसान पहुचाया.
मैं : चिढ के बोला “देखो भाई मेरे सब्र का इम्तिहान मत लो, clue के नाम पर तो तुम कुछ भी बोले जा रहे | मैं एक शांति और अहिंसा प्रिय इंसान हूँ और आज तक मैंने किसी से भी मार-पीट नहीं की है और तुम कहते हो की मैंने तुम्हारे शरीर को चोट पहुचाई है | चलो जब इतना सब कुछ हो ही गया है तो एक आखिरी मज़ाक, अरे मेरा मतलब है की आखिरी clue भी दे ही दो |
अनजान आवाज: Clue 5 – जब चाहा साथ रखा, जब चाहा छोड़ दिया मुझे |
मैं : मैं हसते हुए बोला, भाई पी मैंने रखीं है , और चढ़ आपको गयी है. ये वाला clue तो सारे मजाक की हद को पार कर गया | मैंने किसे छोड़ दिया है भाई | मुझे तो लगता है तुम कोई पागल आशिक़ हो और मेरे घर में चोरी से घूस आये हो | चलो अब बाहर आ जाओ तुम्हारे 5 मजाक खत्म हो गए.
अनजान आवाज: मुझे पता था की आप मुझे भूल गए हो, अब आपको मेरी कोई भी जरुरत नही है , मैं हॉल में टेबल के नीचे हू |
और ये बोल के वो आवाज शांत हो गयी !!!!
मेरे मन में न जाने कितने अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे, और मैंने हॉल की लाइट जलायी और टेबल से दूर खड़ा ही सोच रहा था की कहीं ये पागल चोर मेरे ऊपर हमला न कर दे | यही सब मन की उधेड़ बुन में मैं अपनी आत्मरक्षा के लिए पास में पड़ा हुआ हॉकी उठा लिया और वही से झुक के टेबल के नीचे देखा पर वहां कोई नही था | फिर मैं हिम्मत कर के आगे बढ़ा और टेबल के पास आ कर टेबल के नीचे देखा पर टेबल के नीचे कुछ चॉकलेट के कवर और एक पेन के अलावा कुछ भी नही था | कुछ न पा कर मैं वापस से चिल्लाया “ खुद को मेरा चाहने वाला बोलते हो और मुझसे झूठ बोलते हो, कहाँ हो तुम टेबल के नीचे ” |
इस बार कोई जवाब नही आया, शायद उसके कहे अनुसार वो हमेशा के लिए चुप हो गया था | कोई जवाब न पा के मैंने वहीं हॉल में बैठा टेबल के नीचे पड़े पेन को घूरते हुए उस आवाज के बारे में सोचता रहा | न जाने कैसे अपने इस विचारो की कशमकश में ही मैंने इसका जवाब भी ढूढ़ लिया | सही पढ़ा आपने मैंने जवाब ढूढ़ लिया, और जवाब है पेन(Pen) , जी हाँ पेन | क्यूंकि पेन ही एक ऐसी चीज़ है जो टेबल के नीचे से मिली और सारे तथ्यों और संकेतो पर भी खरी उतरी |
Clue 1 – बचपन का साथी, घर, स्कूल से ले कर कॉलेज तक |
मेरे हिसाब से इसमें तो कोई शक की गुंजाइश ही नही है, बचपन में कैसे पेन हमारे घर (होमवर्क) से ले कर स्कूल और कॉलेज तक साथ निभाया.
Clue 2 – गलत सही सब में आपका साथ दिया, जो कहा वैसा ही किया |
सच में, हमने जो चाहा वैसे उसे प्रयोग किया, चाहे वो कुछ अच्छा लिखने के लिए हो या फिर कुछ गलत |
चाहे वो प्रेम-पत्र हो या फिर झूठी बीमारी का प्राथना-पत्र |
Clue 3 – तुम्हारे भविष्य के लिए मैंने अपना खून बहाया, आज जहाँ भी हो उसमे मेरे खून का भी बलिदान है|
अपने बचपन से ले कर स्नातक(Graduation) तक हर एक दिन, हर एक परीक्षा(Exam) में हमने पेन के खून(ink) मेरा मतलब उसकी श्याही को इस्तेमाल किया , आज हम डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट जो भी बन पाये है शायद बिना पेन के बलिदान के ये संभव नही था |
Clue : 4 – खुद की टेंशन/दुःख में मुझे या मेरी शरीर को नुकसान पहुचाया.
मुझे नही पता की आप लोगो ने भी ऐसा किया है की नही पर मेरे लिए तो ये सच ही है |
मैं अपनी चिंता या दुःख में पेन के ढक्कन(Cap) या फिर उसके पिछले भाग को मुँह से चबाया करता था | इस प्रकार अहिंसावादी होते हुए भी, कई बार मैंने अपने चिंता में उसके शरीर को कई बार बिना सोचे समझे नुक्सान पहुचाया है .
Clue 5 – जब चाहा साथ रखा, जब चाहा छोड़ दिया मुझे |
किस तरह हम पेन को जब तक मन में आया तब तक खुद इस्तेमाल करते और खुद के पास रखते अन्यथा किसी कोने में , सड़क पर या फिर कचरे में फेंक देते थे.
ऐसे ही न जाने कितने साथी हमने अपनी दुनिया से दूर कर दिया है |
ऐसे ही न जाने कितने साथी को हम भूल गए है |
ऐसे ही न जाने कितने साथी को हमने कभी अपना साथी माना ही नही |
ऐसे ही……….
ऐसे ही…………
न जाने जो मैं सोच रहा था वो सही था की नही | न जाने जो जवाब मैंने खोजा वो उपयुक्त था या नही | फिर भी अगर गलत हो तो गलत ही सही पर मैंने एक ऐसे साथी के बारे में सोच लिए, जिसने ज़िंदगी में बहुत साथ दिए और आज इस डिजिटल और तेज़ होती दुनिया में कहीं खो गया | आज सोचा तो समझ आया की न जाने हम कब पेन को अपनी ज़िन्दगी से दूर कर दिया, अब तो नोट्स भी मोबाइल की गैलरी में होते है या फिर xerox, सामान की लिस्ट whatsapp पर, हस्ताक्षर tablet पर ऊँगली से और यहाँ तक की पेन को इतना अच्छा साथी बताने वाला लेख भी laptop पर !!!!!!!!!!!!!
Another awesome piece of art 🙂
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Hehehe Thank you 🙂
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Nice one Rohit…
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Thanks Madam 😀
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Superb and deep. loved reading it.
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THanks Jyoti . Keep smiling and keep writing 🙂
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Profound words…beautifully penned… 🙂
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Thanks for your beautiful comment.
Keep Reading , keep writing and most important keep smiling 🙂
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ek writer ka pen se lagaw hona ..natural feeling :)very well…liked it
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Hahah….wo to h .ek pen hi to hai jo sab kuch sunata h ;)….thank u so much …i m glad,u liked it 🙂
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मन की बात कागज पर बखूबी लिख दी है
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Dhanywad 🙂 ab wahi to ek cheeze h jo bakhobi samjhti h hume 😉
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Yayyyy! You know ye wali story me suspense bohhhhot jyada tha. All the time, I was hoping ki wo aawaz aap ke baare me baat kar rahi and that you’ll find a mirror and you’ll realise ki you have forgotten your own self. But a PEN! 😃 You made me realise the real value of a pen. I lovvvvved this story, Rohit. Keep writing more. 💙
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Wah , finally i succeeded ki aap shi guess nhi kr payi and it was really a suspense😉 actually one day a saw one of my favourite pen lying on the table then i thought to write that 😜 glad u liked it and enjoyed 😇
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