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वो …

वो टूट रही थी,
मैं बचा नहीं पाता,
पर संभाल जरूर लेता |

वो परेशान थी,
मैं कुछ बदल नहीं पाता,
पर हँसा जरूर देता ||

वो थी क़शमक़श में,
मैं ख़त्म नहीं करता,
पर राय जरूर देता |

वो दूर जा रही थी खुद से,
मैं पास नहीं होता,
पर रोक जरूर लेता ||

वो रो रही थी मन में,
मैं सुन नहीं पाता,
पर समझ जरूर लेता |

गिर रही थी जिंदगी में,
मैं संभाल नहीं पाता,
पर हाथ जरूर देता ||

अकेले हो गयी थी वो,
मैं रोक नहीं पाता,
पर साथ जरूर देता |

कसम दे गयी दूर जाने की वरना,
मैं उसका हो नहीं पाता
पर उसे खो भी नहीं देता ||

Author:

Not organized, But you will not find it messy. Not punctual, But will be there at right Time. Not supportive, But will be there, when needed. Not a writer, But you will find this interesting.

72 thoughts on “वो …

  1. हम दूर क्या हुए खुद से
    तुमने तो हमारी रूह से
    भी नाता तोड़ लिया …
    वादे कहाँ गयी वो कसमे
    तुम्हारी
    क्या प्रीत किसी और
    संग जोड़ लिया …?

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    1. Wah ….kya baat kahi hai,,,,,first of all thank u so much for stopping and sharing your thought. 😀 and here is my lines in reply 😛

      काश तेरी रूह से नाता तोड़ सकता,
      काश किसी और से प्रीत भी जोड़ सकता,
      जो तू दूर जा रही थी खुद से,
      काश तेरे रास्ते खुद की तरफ मोड़ सकता | 😉

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      1. आसान नहीं है सुनलो
        मुझसे दामन बचा लेना
        के रूह में उतर जाएंगे
        तुम कुछ न कर पाओगे …

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        1. दाग से क्या डरना,
          दिल और दामन सब तुम्हारा है
          रूह में उतरने का
          तुम्हारा आलाप पुराना है

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          1. गर न हो यकी तो आज़मा कर देख लो
            तुम अपना दामन बचा कर देख लो
            जो न हुए बेताब राहे उल्फत में
            इश्क़ के अंजाम तक आक्र देख लो

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            1. बेताब तो हम,
              बिना आज़मा कर भी रहेंगे |
              पता बताओ इश्क़ का,
              अब तो अंजाम तक आ कर रहेंगे ||

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