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गुनाह !!!

हाँ, मैंने चोरी की !!!
पर खुद क लिए नहीं,
उसके लिए की |
जो अपना सबकुछ,
हँस के दुसरो को दे देती है ||
जो सबके हर तकलीफ,
हँस के सुन लेती है |
जो अपने सारे गम,
चुपचाप सह लेती है ||

हाँ, मैंने चोरी की !!!
चुराया मैंने,
अपने जिंदगी से
कुछ लम्हे |
बस उसके लिए ||
उन लम्हो में ,
मैं उसे हँसाऊँगा |
उसे उसकेहोने का,
एहसास दिलायूँगा ||

हाँ, मैंने चोरी की !!!
बस और बस उसके लिए,
और अगर इस गुनाह
की सजा मौत है |
तो जनाब !!!
नहीं डरता मैं मौत से ||

Author:

Not organized, But you will not find it messy. Not punctual, But will be there at right Time. Not supportive, But will be there, when needed. Not a writer, But you will find this interesting.

36 thoughts on “गुनाह !!!

  1. हाँ, मैंने चोरी की !!!
    चुराया मैंने,
    अपने जिंदगी से
    कुछ लम्हे |
    बस उसके लिए ||
    waah….sarahniye rachna.

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