डगमगा रहे है कदम,
पर लड़खड़ाता नहीं हूँ ।
टूटता हूँ मैं रोज़,
पर चिल्लाता नहीं हूँ ।।
बहुत कश्मकश है रूह की,
चुप हो जाता हूँ, बताता नहीं हूँ ।
ऐसा होता, वैसा होता सब सोचता हूँ,
अपने फैसलों पर पछताता नहीं हूँ ।।
डर तो आज भी बहुत लगता है,
पर अब मैं घबराता नहीं हूँ ।
शिकायतें तो मुझे भी बहुत है ,
मगर हर बात मैं जताता नहीं हूँ ।।
माफ़ कर देता हूँ हर शख्श को पर,
बुरा क्या लगा, ये भुलाता नहीं हूँ ।
थक गयी है आँखें, सारे फरेब देख कर,
बस बंद करता हूँ,कभी आँखों को सुलाता नहीं हूँ ।।