तरस गयी हूँ, घूमने के लिए,
बारिश में भीगने के लिए |
एक चाय का प्याला पीने के लिए,
कुछ पल उनके साथ जीने के लिए ||
उनकी आँखो में खोने के लिए,
कंधे पर सिर रख रोने के लिए |
तरस गए हम वक़्त पाने के लिए,
उनके मन के ज़ज्बात जानने के लिए ||
तरस गए है, उनसे प्यार जताने के लिए,
वो मेरे है, इस ख़ुशी पर इतराने के लिए |
प्यार के एहसास महसूस करने के लिए,
छोटी-छोटी बातों पर मोहब्बत से लड़ने के लिए ||
प्यार से उनको कुछ खत लिखने के लिए,
खत पढ़ कर,उनके अल्फ़ाज़ सुनाने के लिए |
पर उनके पास मेरे लिए वक़्त कहाँ है,
खुश है वहीं, वो अब जहाँ है ||
उसके लिए भी तो बादल बरसता होगा,
भीगने के लिए वो भी तरसता होगा ||
उसे भी तो कुछ बताना होगा ना,
शायद मुझसे प्यार जाताना होगा ना |
हकीकत ना सही ये सब,
सपने पुरे ख्वाब में करेंगे|
मिलने दो कभी,
हर एक तड़प हिसाब में करेंगे ||
Idea Credit & Original poem – “RITIKA”. Modified by – “ROHIT”